शहडोल। कोरोना वायरस के खौफ ने ट्रेन और बसों का परिसंचालन क्या बंद हुआ अब तक रिक्शा चालक और ऑटो चालकों को अपनी दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होने लगा है। सबसे ज्यादा पेट पर लात रिक्शा चालकों के ऊपर पड़ी है। इनको ऑटो होने से वैसे ही कम सवारियां मिला करती थीं और अब तो और मुसीबत हो गई है।
किसी तरह दिन भर दो तीन सौ रूपये कमाने वाले रिक्शा चालक आज काम ठप हो जाने से दो जून की रोटी जुटाने को परेशान नजर आ रहे हैं। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सोमवार को रिक्शा चालक भुसुहुआ बैगा जब अपना रिक्शा लेकर स्टेशन पहुंचा तो पता चला कि आज सारी ट्रेनें बंद हैं और यह स्थिति 31 मार्च तक रहने वाली है यह सुनकर उसके होश उड़ गए।
रिक्शे पर ही चुप होकर बैठ गयाः जब रिक्शा चालक भुसुहुआ को यह जानकारी मिली कि अब ट्रेनें 31 तक बंद हैं और बसें भी नहीं चल रही हैं तो उसको अपने घर आटा चावल दाल कैसे लेकर जाएगा इस बात की चिंता सताने लगी।
जब नईदुनिया रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि अब आप अपने घर में भोजन की व्यवस्था कैसे करोगे तो उसने कहा कि ऊपर वाला जाने। उसने जो किया है अब वहीं संभालेगा। इस तरह का जबाब सुनकर यह लगा कि वास्तव में भारत में साहस है कि वह अपने दुखों के दिनों को काटने में कितना सक्षम है।
अब तो दुकानें भी बंद हैं: रिक्शा चालक का कहना था कि जब सवारी नहीं निकलती है तो हम दुकानों का सामान ढोकर अपना खर्चा निकाल लेते हैं लेकिन अब तो सरकार ने दुकानें तक बंद करा दी हैं। इसके कारण अब तो यह रास्ता भी बंद हो गया है। हालांकि इनका कहना था कि हमने चावल और नमक घर में कुछ दिनों के लिए रखा है लेकिन यदि इस तरह बंद चलता रहा तो फिर हम बुरी तरह से परेशान हो जाएंगे। इनको मास्क से मतलब नहीं: जब रिक्शा चालक भुसुहुआ बैगा से पूछा गया कि आप मास्क चेहरे पर क्यों नहीं लगाते हैं आप खुद को वायरस से कैसे बचाओगे तो इनका सीधा जबाब था कि हम अपने पास तौलिया रखते हैं और यही हमारा मास्क है। इन्होंने कहा कि हमारा कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता है हम मेहनतकश इंसान हैं। हम गरीब पैदा हुए हैं और ऐसे ही मर जाएंगे पर कोरोना से नहीं मरेंगे। इनमें अभी भी संघर्ष का जज्बा बाकी है।